डिजिटल इंडिया सीखो और आगे बढ़ो
आज मैं आपको इस लेख में कुछ ऐसे Best Ai Tools For Video Creator के बारे में बताऊंगा, जिन्होंने सोशल मीडिया पर अभी तक धमाल मचाया हुआ है। इन AI की मदद से आप 3d illustration, एनिमेटेड फेस वीडियो और अपनी वीडियो में केप्शन भी लगा सकते हैं।

इस लेख को पूरा पढ़ने तक आप जान जायेंगें, की किस ए आई से क्या काम किया जा सकता है।
Luma AI इमेज में 3d Effect लगाने के काम आता है। इससे आप अपनी वीडियो में गेमिंग और कार्टून जैसी अट्रैक्टिव वीडियो बना सकते हैं। अगर आपके पास ड्रोन से शूट करने का बजट नहीं है, तो Luma AI की मदद से अपनी वीडियो में ड्रोन का इफेक्ट दे सकतें हैं। Luma AI की वेबसाइट के अलावा आप इसके App का इस्तेमाल कर सकते हैं। इस ऐप को आप प्ले स्टोर से डाउनलोड कर सकते हैं।
आपने यूट्यूब या इंस्टाग्राम पर मोटिवेशन पॉडकॉस्ट की शॉर्ट क्लिप देखी होंगी। Spikes Studio से बड़ी वीडियो की शॉर्ट क्लिप बना सकते हैं।
ये प्रोसेस पूरा होने के बाद, कुछ शॉर्ट क्लिप बनाकर देगा। जिसे आप किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर अपलोड कर सकते हैं।
Maestra AI एक ऐसा AI है, जिसका इस्तेमाल करके आप अपनी वीडियो में 90 से भी ज्यादा अलग-अलग भाषाओं में वॉइस डबिंग कर सकते हैं। इसके कुछ और भी फीचर्स हैं, जैसे-
वीडियो रेडी होने के बाद, Maestra ai आपके द्वारा बनाए गए अकाउंट पर लिंक भेजी जाएगी। जिसको आप ओपन करके Export कर सकते हैं।
Canva Graphic Designer का एक ऐसा प्लेटफॉर्म है, जिसकी मदद से आप अपने ब्लॉग या वीडियो के लिए अट्रैक्टिव और Catchy Thumbnail बना सकते हैं। Canva को अलग-अलग कामों के लिए यूज किया जा सकता है, जिसमें ये कुछ फीचर्स शामिल हैं।
अब अपने हिसाब से वीडियो में एडिट कर सकते हैं, Canva में आपको Text, Font, Animation, Colour जेसे कई प्रकार के फीचर्स मिलेंगे। जो आपको वीडियो एडिट करने में सहायता करेगी।
Bing AI, गूगल के जेसा ही एक सर्च इंजन है। इसे माइकोसॉफ्ट कंपनी के द्वारा बनाया गया है। Bing AI यूजर के सवालों के जवाब इनफॉरमेशन के साथ इंटरनेट से ढूंढकर, यूजर को दिखाता है। वैसे ही Bing AI Image Creator है, जो यूज़र के द्वारा दिए गए टेक्स्ट प्रॉम्प्ट से इमेज जनरेट करके देता है।
हाल ही में सोशल मीडिया के इंस्टाग्राम प्लेटफॉर्म पर 3d Image का ट्रेंड छाया हुआ है। जो लोगों को काफी पसंद आ रहा है, आपने भी इंस्टाग्राम पर ज्यादातर सोशल मीडिया वाली 3d Image की वीडियो देखी होंगी।
जिसमें एक लड़का सोशल मीडिया के आइकन पर बैठा हुआ होता है, और उसके पीछे बैकग्राउंड में सोशल मीडिया प्रोफाइल होती है। इसी 3d Image को कैसे बनाते हैं, इसे समझते हैं।
3d Image को App और वेबसाइट दो तरीकों से बना सकते हैं, दोनों तरीके नीचे बताए गए हैं।
प्ले स्टोर से Bing AI के ऐप को डाउनलोड करके Image Creator पर सिलेक्ट करना है। इसके बाद टेक्स्ट प्रॉम्प्ट को बॉक्स में पेस्ट करके Surprise Me पर सिलेक्ट करना है।
अपने ब्राउज़र में Bing AI Image Creator की वेबसाइट को ओपन करना है। दिए गए Box में टेक्स्ट प्रॉम्पट को पेस्ट करना है, और Join & Create के ऑप्शन पर सिलेक्ट करना है। कुछ समय लेने के बाद चार इमेज जनरेट करके दिखाता है।
Prompt- 1 create a 3d image,A 25 year old boy is sitting on his chair in the techaasvik YouTube studio and talking to a beautiful 25 year old girl. There is Facebook logo in the background which looks very beautiful. Prompt- 2 Create a 3D illustration of an animated character sitting casually on top of a social media logo "instagram". The character must wear casual modern clothing such as jeans jacket and sneakers shoes. The background of the image is a social media profile page with a user name "Profile Name" and a profile picture that matches the animated character. Make sure the text is not misspelled.
Renderforest एक ऐसा पावरफुल एआई है, जिससे Youtube Video के लिए Intro, Presentation बना सकते हैं। इसके अलावा इसमें कुछ ऐसे फीचर्स हैं, जो आपके बोहोत काम आ सकते हैं।
इससे Youtube Channel Logo, Instagram Profile Logo, Website के लिए Logo और Favicon बना सकते हैं।
इससे Iphones Mockup, Book Mockup, Logo Mockup, Business Card Mockup आदि बना सकते हैं।
इससे वेबसाइट के लिए Landing Page, एक पेज की वेबसाइट और वैडिंग इन्विटेशन पेज बना सकते हैं।
इससे आप यूट्यूब के लिए थंबनेल, यूट्यूब बैनर, प्रेजेंटेशन और सोशल मीडिया के लिए पोस्टर बना सकते हैं।
इससे एनीमेशन वीडियो, कार्टून एनीमेशन बना सकते हैं। अपने बिजनेस का नाम जनरेट कर सकते हैं।
यह एक ऐसा AI Tool है, जिससे आप वॉइस का क्लोन, वॉइस डबिंग, एआई के द्वारा 29 से भी ज्यादा भाषाओं में टेक्स्ट से स्पीच क्रिएट कर सकते हैं।
अकसर आपने देखा होगा कि सोशल मीडिया पर एआई जनरेटेड रील और शॉर्ट वायरल होती हैं। इन वीडियो में एआई की आवाज दी गई होती है। अगर आपको भी इसी AI की आवाज में अपनी वीडियो को बनाना है, तो इन तरीकों को फॉलो करें।
यह एक वीडियो एडीटर सॉफ्टवेयर होता है, जो यूज़र के लिखे गए टेक्स्ट का इस्तेमाल करके एक वीडियो बनाकर देता है। पहले ये एआई यूजर्स के लिए ट्रायल पर था, लेकिन अब इसका प्रीमियम आ गया है। जिसका आपको कुछ भुगतान करना पड़ता है। Pictory AI के कुछ Alternative AI हैं, जिनका आप इस्तेमाल कर सकते हैं।
इसके लिए Pictory AI की जगह InVideo AI का इस्तेमाल करके वीडियो को बनाते हैं।
आशा करता हूं, आपको आज का लेख पसंद आया होगा। अगर आपको ऐसे ही किसी AI Website के बारे में जानकारी है, तो कॉमेंट करके बताएं। धन्यवाद, राधे राधे।
आज के समय में डिजिटल मीडिया में पॉडकास्ट की लोकप्रियता काफी आगे बढ़ रही है। जिसके चलते लोग, पॉडकास्टिंग को सुनना पसंद कर रहे हैं और इस फील्ड को आजमाना चाहते हैं। पॉडकास्ट के जरिए आप अपनी नॉलेज और अपने एक्सपीरियंस को अपने ऑडियंस तक पहुंचा सकते हैं। आज के विषय “Podcast kya hai in hindi” है , यह कैसे काम करता है, इसी अच्छे से समझेंगे।

अगर आपके मन में भी इन सवालों का जवाब जानने की उत्सुकता है, तो आप इस आर्टिकल को जरूर पढ़ें। इस लेख में, हम आपको पॉडकास्ट के बारे में सब कुछ बताएंगे, जैसे कि पॉडकास्ट क्या है, कैसे बनाएं, पॉडकास्ट का इतिहास, पॉडकास्ट के प्रकार, पॉडकास्ट के फायदे, पॉडकास्ट के उदाहरण, आदि।
अगर देखा जाए तो पॉडकास्ट शब्द की उत्पत्ति दो शब्दों से हुई हैं, पॉड और ब्रॉडकास्ट। इसमें POD का मतलब प्लेयेबल ऑन डिमांड है। इसका इस्तेमाल ब्लॉग और वेबसाइट पर भी आसानी से किया जा सकता है।
यह एक डिजिटल ऑडियो प्लेटफॉर्म होता है, इसके माध्यम से हम अपनी आवाज को ऑडियो फॉर्म में रिकॉर्ड करके अलग-अलग प्लेटफार्म पर अपलोड कर सकते हैं। इस तरह पॉडकास्टिंग करके अपनी आवाज को दुनिया भर के लोगों तक पहुंचा सकते हैं।
पॉडकास्ट ऑडियो और वीडियो एपिसोड की एक सीरीज होती है। पॉडकास्ट के इन एपिसोड को आप आसानी से स्मार्टफोन,आईपॉड, कंप्यूटर या कार में भी सुना सकते हैं। पॉडकास्ट बनाने और इसे इन्टरनेट पर अपलोड करने वाले व्यक्ति को पॉडकास्टर कहा जाता है।
पॉडकास्ट शब्द की उत्पति 2004 में डेव विनर और एडम करी द्वारा की गई थी। इन्होंने एक ऐसा सॉफ्टवेयर बनाया, जिसमें ऑडियो को किसी दूसरे डिवाइस में ट्रांसफर किया जा सकता है।
इस तकनीक की वजह से लोग किसी भी जगह पर आसानी से अपने पसंद के न्यूज या दूसरे प्रोग्राम की ऑडियो अपने डिवाइस पर सुन सकते हैं। Podcast के ये कुछ विषय हैं, जैसे- Health, Entertainment, Game’s, Education आदि।
पूरी दुनिया में, आज के समय में 1 बिलियन से भी ज्यादा लोग Podcast को सुनना पसंद करते हैं। अगर भारत में पॉडकास्ट सुनने वालों की संख्या की बात करें, तो 2023 के आंकड़े के अनुसार 176 मिलियन लोग पॉडकास्ट अपने डिवाइस में सुनते हैं।
अगर पॉडकास्ट करने के फायदे हैं, तो इसके कुछ नुकसान भी हैं। जो इस प्रकार हैं-
पॉडकास्ट के 6 प्रकार के होते हैं, जिसमें ये सब शामिल हैं।
इंटरव्यू पॉडकास्ट में एक या अधिक व्यक्ति अतिथि को को आमंत्रित करते हैं पॉडकास्टर द्वारा हमेशा किसी चर्चित व्यक्ति को अतिथि के रूप में बुलाया जाता है। इंटरव्यू पॉडकास्ट के हर नए एपीसोड में एक नए अतिथि को आमंत्रित किया जाता है इस प्रकार के पॉडकास्ट में पॉडकास्टर अतिथि से उनके जीवन भर के अनुभव और विषय से संबंधित सवाल जवाब करता है
पॉडकास्टर हमेशा अतिथि से कुछ अनोखे सवाल करता है अतिथि भी उन सवालों के जवाब अपने एक्सपीरियंस से देते हैं जिससे ऑडियंस को भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है इस प्रकार के पॉडकास्ट काफी ज्यादा इनफॉरमेशनल और रोचक साबित हो सकते हैं
Narrative यानी कथा, इसमें पॉडकास्टर अपनी आवाज में इतिहास या कहानी को सुनाता है। इस पॉडकास्ट को सुनने से लोगों को मनोरंजन के साथ किसी विषय पर नॉलेज और इतिहास से जुड़ी जानकारी से सीखने को मदद मिलती है।
यह पॉडकास्ट एजुकेशन से जुड़े होते हैं, जिनमें पॉडकास्टर Educational, Professional, Personal Development से जुड़े विषयों पर बात करता है। पॉडकास्ट शिक्षा से संबंधित अनुभव और विचारसांझा करके ऑडियंस को जागरुक करते हैं। इस प्रकार के पॉडकास्ट को सुनने से लोगों को अपने प्रति आत्मविश्वास, अपनी एबिलिटी और नए नए स्किल को सीखने में मदद मिलती है।
इस प्रकार के पॉडकास्ट में पॉडकास्ट किसी विशेष विषय पर अतिथि से बातचीत करता हैऔर यह बातचीतमूल रूप से आम बातचीत की तरह होती है। जैसे आपने किसी रेडियो या Fm कार्यक्रम की बातचीत को सुना होगा।
जब एक से अधिक व्यक्ति एक जगह पर बैठकर किसी विशेष विषय पर बातचीत करते हैं, तो इस पैनल कहा जाता है। जैसे न्यूज़ चैनल में एक एंकर 6 या 7 लोगों के साथ किसी विशेष विषय पर चर्चा करता है। इस तरह के समूह को पैनल कहा जाता है।
इसी तरह के समूह में की गई चर्चा को हम पैनल पॉडकास्ट कह सकते हैं। पैनल पॉडकास्ट में एक से अधिक लोग होते हैं,जो एक निश्चित टॉपिक पर बातचीत करते हैं। ऐसे पॉडकास्ट लोगों को काफी पसंद भी आते हैं।
इस पॉडकास्ट में केवल एक ही पॉडकास्टर होता है। सोलो पॉडकास्ट में पॉडकास्ट अक्सर हर एपीसोड में एक याअधिक विषयों पर बातचीत करता है। पॉडकास्टर बातचीत को छोटे-छोटे बिंदुओं में ऑडियंस को बताता रहता है।
जिन ऑडियो प्लेटफार्म पर Podcast कंटेंट को सुना जाता है, उन्हें पॉडकास्टिंग कहते हैं। जिसमें Kuku FM, Pocket Fm और Spotify Podcast शामिल हैं।
पॉडकास्टिंग शुरू करना मुश्किल काम नहीं है, बस आपको इन सभी बातों को ध्यान में रखना है।
होस्टिंग, आपके रिकॉर्डेड पॉडकास्ट को इंटरनेट पर अपलोड करने का एक आसान जरिया है। इसीलिए पॉडकास्ट शुरू करने से पहले एक अच्छी होस्टिंग की जरूरत होती है।
रिकॉर्डेड पॉडकास्ट को इंटरनेट पर अपलोड करके उसे आगे भविष्य के लिए Save रखने और हेंडल करने के लिए होस्टिंग की अधिक आवश्यकता होती है। आप अपनी जरूरत और बजट के हिसाब से कोई भी अच्छी होस्टिंग चुन सकते हैं।
जैसे –
पॉडकास्ट शुरू करने के लिए आपको एक ऐसी कैटेगरी का चुनाव करना होगा। जिसमें आपकी सबसे अधिक रुचि है। क्योंकि अगर आप अपनी रुचि के हिसाब से केटेगरी का चुनाव करते हैं, तो आप अपनी ऑडियंस को ज्यादा से ज्यादा कंटेंट प्रदान कर सकते हैं।
जिस तरह मेरी रुचि टेक्नोलॉजी में है, इसलिए मैं हमेशा इसी कैटेगरी पर कंटेंट लिखता रहता हूं। आपके इन पॉडकास्ट कैटेगरी में आपको रुचि ढूंड सकते हैं –
पॉडकास्ट शुरू करने से पहले आपको एक यूनिक नाम चुनना होगा। जो आपके टॉपिक या केटेगरी से मेल खाता होना चाहिए। पॉडकास्ट का नाम चुनते हुए यह ध्यान में रखना चाहिए, कि वह आपकी ऑडियंस को आकर्षित करेगा या नहीं। इसलिए नाम ऐसा होना चाहिए जो सुनते ही आपकी ऑडियंस को याद हो जाए।
पॉडकास्ट बनाने के बाद आपको एक अट्रैक्टिव Logo बनाना जरूरी है। क्योंकि लोगों आपके पॉडकास्ट की पहचान होती है। अगर आपका पॉडकास्ट भविष्य में ऊंचाइयां प्राप्त करता है, तो आपका Logo एक ब्रांड बन जाएगा। इसलिए पॉडकास्ट का Logo आकर्षक होना चाहिए।
पॉडकास्ट को ज्यादा अच्छा बनाने के लिए उसकी आवाज को हाई क्वालिटी पर रखना जरूरी होता है। क्योंकि सुनने वाले को पॉडकास्टर की आवाज साफ और क्लियर सुनाई देनी चाहिए। इसके लिए आपके पास एक अच्छा माइक जरूर होना चाहिए। आजकल मार्केट में बहुत सारे ऐसे माइक आसानी से मिल जाते हैं जिनमें बैकग्राउंड नॉइस कैंसिलेशन फीचर होता है।
पॉडकास्ट भी ब्लॉगिंग करने जैसा ही है, ऐसा इसलिए क्योंकि इसमें ऐसे टॉपिक्स का सिलेक्शन करना जरूरी होता है। जिसमें आप ज्यादा से ज्यादा कंटेंट पोस्ट कर सकें। इसलिए एक ऐसा टॉपिक चुनना चाहिए, जिसमें आपकी रुचि हो या किसी काम में आपका एक्सपीरिएंस है।
पॉडकास्ट में बाकी सब चीज़े एक तरफ और पॉडकास्ट का कवर एक तरफ, क्यूंकि कवर में आपके पॉडकास्ट की एक छोटी सी प्रीकेप होता है। जिससे पॉडकास्ट सुनने वाले को आपके पॉडकास्ट में ज्यादा दिलचस्पी आती है, और आपके पॉडकास्ट ऑडियो को ज्यादा लिसनर मिलते हैं। इसलिए पॉडकास्ट को ज्यादा आकर्षित बनाने के लिए उसके Cover को आकर्षित बनाना जरूरी होता हैं।
पॉडकास्ट को रिकॉर्ड और एडिट करने के लिए आपको एक अच्छे से सॉफ्टवेयर या एप्लीकेशन की आवश्यकता होती है। इसके उपयोग करके आप आसानी से पॉडकास्ट को रिकॉर्ड कर सकते हैं। एक ऐसे सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करें जो आपकी आवाज की फ्रीक्वेंसी को कम ना करें और जिसमे बैकग्राउंड नॉइस कैंसिलेशन जैसे ऑप्शन भी मौजूद हो।
जैसे –
आज का पूरा लेख Podcast Kya Hai in Hindi पर है। जिसमें मैने आपको बताया है, कि पॉडकास्ट करने के क्या फ़ायदे हैं और पॉडकास्ट कैसे शुरू करें। आशा करता हूं, आपको यह लेख पसंद आया होगा। अगर आपका इस लेख से जुड़ा कोई सवाल है तो अपने सवाल को कॉमेंट करें।
रैंकिंग के लिए वेबसाइट या वेब पेज की परफॉरमेंस अच्छी होना जरूरी होता है। Google, Core Web Vitals के जरिए किसी वेबसाइट की परफॉरमेंस को मापता है। Core Web Vitals के चार पार्ट हैं, LCP, FCP, CLS, FID जिसको गूगल द्वारा की गई घोषणा के अनुसार 2024 में Inp द्वारा बदला जाएगा।

आज के लेख में जानेंगे,Core Web Vitals INP Issue Kya Hai, Inp Issue क्यों आता है। इससे Seo Ranking पर क्या असर पड़ सकता है, और Core Web Vitals Inp Issues को कैसे ठीक कर सकते हैं।
किसी वेब पेज पर क्लिक करने से लेकर उसके जवाब देने तक के समय को First Input Delay (FID) कहते हैं।
Google Inp– इसको पूरे शब्दों में Interaction To Next Paint कहते हैं। यह वेबसाइट या वेब पेज के Responsive Stability को बताता है, कि वह Responsive है या नहीं। Google Inp, यूजर्स के Interaction पर ध्यान रखता है।
यूजर के नजरिए से समझते हैं– जब आप किसी वेबसाइट को ओपन करके उसमें अपना कोई काम करते हैं। कोई एक्शन लेते हैं या किसी बटन पर क्लिक करते हैं, तो वेबसाइट आपके जवाब का कितने समय में रिस्पॉन्स करती है। इसी कार्य को पेंट कहते हैं।
अगर आपको वेबसाइट के जवाब देरी से मिलते हैं, तो आपको लगेगा की वेबसाइट सही तरीक़े से काम नहीं कर रही है। इस क्रिया से पता चलता है, कि वेबसाइट कितनी स्पीड में काम करती है। इस क्रिया को हम Interaction Delay कहते हैं।
Google Inp आपको बताता है, कि वेबसाइट आपके पूछे गए सवाल का जवाब देने में कितना समय लगाती है। अगर वेबसाइट का Inp स्कोर ज्यादा होता है, तो वेबसाइट आपके द्वारा किए गए किसी भी कार्य या आपके इनपुट का रिस्पॉन्स देने में देरी करती है। जो बिल्कुल भी सही नहीं है, आगे जानेंगे एक अच्छा आईएनपी स्कोर क्या है।
अगर Inp का स्कोर 200 मिलीसेकंड या इससे कम है, तो यह आपकी वेबसाइट के लिए अच्छा है। अगर यह स्कोर 200 से 400 मिलीसेकंड के बीच तक है, तो आपको एक Warning मिलेगी। 400 मिलीसेकंड या उससे ज्यादा का स्कोर देखने को मिलता है, तो यह स्कोर वेबसाइट के लिए बोहोत बुरा साबित हो सकता है। इसके लिए आपको Core Web Vitals को सुधारने की जरूरत होगी।
Google Inp का स्कोर देखने के लिए आप इन टूल्स का इस्तेमाल कर सकते हैं।
Google INP का Seo पर गलत असर भी पड़ सकता है क्योंकि अगर वेबसाइट यूजर के जवाब देने में देरी करती है तो यूजर्स पेज को छोड़कर भी जा सकते हैं। जिससे पेज का बाउंस रेट, पेज की रैंकिंग और User Experience पर गलत असर पड़ता है।
INP और FID दोनों ही वेबसाइट की स्पीड और परफॉर्मेस चेक करने के लिए बनाया गया है। लेकिन इन दोनों में कुछ अंतर भी है।
| INP | FID |
| INP, User Experience और पेज की क्वालिटी पर ध्यान रखता है। Core Web Vitals INP, वेबसाइट के पार्ट्स को Improve करने का काम करता है। | FID पहले वेबसाइट की स्पीड का अंदाजा लगाता है, और उसपर ध्यान रखता है। |
| INP यूज़र और वेबसाइट के बीच जुड़ने के समय को देखता है, कि वेबसाइट यूजर के रिजल्ट को समझने में और उसका रिज़ल्ट स्क्रीन पर दिखाने में कितना समय लगाता है। | Core Web Vitals First Input Delay, ब्राउज़र के रिस्पॉन्स पर ध्यान रखता है की वह यूजर के इनपुट का कितना समय लगाता है। |
Google Core Web Vitals Inp को ठीक करने के लिए इन्हें पढ़ें।
इनपुट डिले वह होता है, जब यूजर किसी वेबसाइट को अपने मोबाइल या किसी अन्य डिवाइस में ओपन करता है, तो वेबसाइट यूजर के इनपुट का रिस्पॉन्स देने में कितना समय लगाती है। इनपुट डिले में जैसे माउस, टचस्क्रीन, कीबोर्ड जेसे इनपुट डिवाइस शामिल हैं। इसको कम करने के लिए आपको इनपुट डिवाइस, मोनिटर, V-Sync और फ्रेम रेट कि सेटिंग को चेक करना चाहिए।
किसी भी ब्राउज़र का काम पेज को दिखाना होता है। पेज दिखाने के लिए ब्राउज़र को HTML, Javascript जेसे कोड को पढ़ना और समझकर यूजर की स्क्रीन पर दिखाना होता है। अगर ब्राउज़र ये समझने में 50 मिलीसेकंड से ज्यादा का समय लगाता है, तो इसी क्रिया को Long Task कार्य कहते हैं। यह ब्राउज़र के काम को रोककर Fid Issue बढ़ा देता है।
Long Tasks को ठीक कम करने के लिए आप इन स्टेप्स को फ़ॉलो कर सकते हैं।
इससे बचने के लिए DOM के Read और Write को एक साथ करने से बचना होगा क्योंकि इसके एक साथ होने से कईं सारी लेआउट स्टाइल को दोबारा गिन लिया जाता है। जिससे परेशानी का सामना करना पड़ता है। यह सब कुछ Javascipt में स्टाइल अपडेट करने के तुरंत बाद उसे पढने के लिए Request भेजने से होता है। ऐसा करने पर हम ब्राउज़र को वेब पेज के अपडेटेड एलिमेंट्स को जल्दी से दिखाने पर मजबूर करते हैं। इससे स्पीड कम हो जाती है।
DOM यानी Document Object Modal, यह नोड्स Documents के अनेक हिस्सों को वेब पेज में दिखाते हैं, जिनमें टेक्स्ट स्ट्रिंग्स, कॉमेंट और एलिमेंट्स शामिल हैं। इसका गलत साइज वेबसाइट की परफॉरमेंस और स्पीड पर असर डालता है। अगर DOM का साइज ज्यादा बड़ा है, तो उसकी वजह से वेबसाइट को लोड होने में समय लग सकता है। इसलिए DOM Size को सुधारकर उसको छोटा और सिंपल रखना चाहिए।
पेज की एक्सपीरियंस और उसकी क्वालिटी को सुधारने के लिए आप Lighthouse नाम के इस टूल का इस्तेमाल कर सकते हैं। लाइटहाउस ने DOM का साइज 1,400 नोड्स तक का होता है। अगर DOM का साइज इससे ज्यादा होता है, तो ये टूल साइज को सुधारने की सलाह भी देता है।
वेब ब्राउज़र HTML को पार्स और रेंडर करने के लिए एक निश्चित टाइम और मेमोरी लेता है। ब्राउज़र पर HTML सर्वर से छोटे छोटे टुकड़ों के रूप में आती है। इसके बाद ब्राउज़र इन टुकड़ों को एक-एक करके पार्स करके रेंडर करता है, इससे वेब पेज की परफॉरमेंस में सुधर होता है।
लेकिन कुछ वेबसाइट HTML को क्लाइंट पर रेंडर करती है इसके लिए जावास्क्रिप्ट का इस्तेमाल किया जाता है इस Process को सिंगल पेज एप्लीकेशन (SPA) कहा जाता है
इसके नुकसान क्या हैं-
आज मैने आपको इस लेख में Core Web Vitals Inp के बारे में बताया है, Google Inp का स्कोर कैसे सुधारें और इस समस्या को कैसे ठीक कर सकते हैं।
आशा करता हूं, कि आपको इस लेख से कुछ सीखने को मिला होगा। अगर इस लेख को लेकर आपका कोई सवाल है, तो आप कॉमेंट करके पूछ सकते हैं। अंत तक पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद, राधे राधे।
आज का लेख How to Fix the Cumulative Layout Shift in 2024 पर है। आज मैं आपको बताऊंगा, कि (What is Cls Issue) CLS क्या है, 2024 में Cls Fix Kaise Kare और वेबसाइट की गुणवत्ता, यूजर एक्सपीरियंस, और SEO पर क्या प्रभाव होगा।

CLS Page Experience सुधारने के लिए एक जरूरी Metric है, इसका पूरा नाम Cumulative Layout Shift है। CLS से आप अपनी वेबसाइट की Visual Stability को देख सकते हैं।
CLS से पता चलता है, कि जब वेबसाइट का पेज लोड होता है, तब उसके लेआउट और एलिमेंट्स कितनी बार चेंज होते हैं। अगर वेबसाइट के एलिमेंट्स एक से ज्यादा बार शिफ्ट होते हैं, तो इससे वेबसाइट पर आने वाले यूजर को कंटेंट पढ़ने में, बटन और एलिमेंट्स पर क्लिक करने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। CLS Fix Kaise Kare ये जानने से पहले CLS Score के बारे में जानते हैं।
स्कोर समझने के लिए इसको तीन पार्ट में बांट देते हैं और इसे सही से समझते हैं।
वेबसाइट की अच्छी रैंकिंग के लिए Cls Issue का स्कोर 0.1 या उससे कम का होना चाहिए।
अगर वेबसाइट का CLS स्कोर 0.1 से 0.15 के बीच का होता है, तो आपको CLS Fix करने की जरूरत है।
वेबसाइट के लिए सबसे बुरा CLS Score 0.15 से 0.25 के बीच तक का होता है। अगर वेबसाइट का स्कोर 0.25 से ज्यादा है, तो यह वेबसाइट के लिए सबसे बुरा स्कोर माना जाता है।
CLS Fix करने के लिए उसके स्कोर को कम करना होगा, जिसके लिए आप इन तरीकों को फॉलो कर सकते हैं।
विडीयो ऑप्टिमाइज करने से वीडियो फॉर्मेट का साइज, उसकी क्वालिटी और रिज़ॉल्यूशन को पहले से अच्छा और बेहतर बना सकते हैं। इससे फायदा यह होगा, कि वीडियो जल्दी लोड होने लगेगी। जिससे कम डेटा का इस्तेमाल होगा।
और वीडियो और ज्यादा अट्रैक्टिव लगेगी।
आप वीडियो ऑप्टिमाइज़ करते समय इन तरीकों को फॉलो कर सकते हैं, जो इस प्रकार हैं।
वीडियो की फॉर्मेटिंग पर इस प्रकार से ध्यान देना है, जिससे वीडियो ब्लॉग और यूज़र के डिवाइस पर सही से दिखाई दे। ज्यादातर ब्लॉग में Mp4, OGG और WebM ये तीन प्रकार के फार्मेट का इस्तेमाल करते हैं। आप किसी भी एक फॉर्मेट का इस्तेमाल अपनी वीडियो फॉर्मेटिंग के लिए कर सकते हैं।
वीडियो की फॉर्मेटिंग साइज और क्वालिटी के अनुसार वीडियो का रिज़ॉल्यूशन को चुनना चाहिए। अगर आप वीडियो में हाई रिज़ॉल्यूशन का इस्तेमाल करते हैं, तो वीडियो को जल्दी लोड होने में समय लग सकता है। जिससे यूज़र का डाटा जल्दी खत्म होगा, इसलिए वीडियो रिज़ॉल्यूशन के लिए आम तौर पर 1080p या 720p का इस्तेमाल किया जाता है। आप किसी एक रिज़ॉल्यूशन का इस्तेमाल अपनी वीडियो में कर सकते हैं।
वीडियो को टॉपिक के अनुसार छोटा या बड़ा रखना चाहिए, क्युकी इससे यूजर्स को वीडियो का कंटेंट समझने में आसानी रहेगी। इसके लिए आपको ध्यान देना की विडियो को ना ज्यादा छोटा रखना है, और नाही ज्यादा लंबा रखना है। अगर वीडियो ज्यादा समय की हुई तो यूजर्स वीडियो को बीच में देखना छोड़ सकते हैं। इसलिए वीडियो की डिस्टेंस को कम से कम 3 से 10 मिनट तक का इस्तेमाल करना अच्छा मानते हैं।
अक्सर सभी अपनी वेबसाइट पर अलग अलग तरह के फोंट्स का इस्तेमाल करते हैं जिन्हें कस्टम font कहते हैं।
सभी अपनी वेबसाइट के डिजाइन और ब्रांडिंग को अलग और दूसरों से बेहतर दिखाने के लिए इन फौंट्स का इस्तेमाल करते हैं।
लेकिन इन फौंट्स का इस्तेमाल करने से वेबसाइट लोडिंग टाइम बढ़ने के साथ वेबसाइट स्पीड पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लेआउट शिफ्ट बदलती है और इसमें सुधार नहीं करने से बढ़ोतरी होती है। इससे वेबसाइट का CLS स्कोर खराब हो सकता है। यही नहीं इससे यूजर एक्सपीरियंस पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
दोस्तों लेकिन ऐसा होता क्यों है – CLS Fix ना होने के मुख्य दो कारण हो सकते हैं
जब आप कस्टम Font का इस्तेमाल अपनी वेबसाइट पर करते हैं, तो कस्टम Font के लोड होने तक वेबपेज का टेक्स्ट Hide या Invisible रहता है।
इसीलिए जब कोई यूजर आपकी वेबसाइट को खोलता है, तो वेबसाइट का कस्टम फोंट लोड होने तक यूजर को कोई भी टेक्स्ट या इनफॉरमेशन दिखाई ही नहीं देती है। क्योंकि कस्टम फॉन्ट दिखने के लिए तैयार होने तक वेबपेज खाली दिखाई देता है।
अगर कस्टम फोंट लोड होने में थोड़ी भी देरी हो जाती है, तो इसका मतलब यह होगा कि आपकी वेबसाइट बहुत ज्यादा धीरे काम कर रही है। इससे आपकी वेबसाइट की लेआउट बदल सकती है।
यह देखकर यूजर आपकी वेबसाइट को बहुत जल्दी छोड़ कर चला जाता है। जिससे वेबसाइट का बाउंस रेट भी बढ़ता है। बाउंस रेट ज्यादा होने कारण गूगल इसे खराब यूजर एक्सपीरियंस की कैटेगरी में रखता है।
जब आप कस्टम Font का इस्तेमाल अपनी वेबसाइट पर करते हैं तो आपको कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ता है
यूजर जब वेबसाइट पर आता है तो कस्टम फोंट लोड होने तक Default फोंट में वेबपेज टेक्स्ट यूजर डिवाइस में दिखाई देता हैं। जब आपका कस्टम Font दिखने के लिए तैयार हो जाता है तो Default Font की जगह कस्टम Font दिखने लगता है लेकिन इससे कई बार वेब पेज में लेआउट शिफ्ट की दिक्कत आती है। इसके कारण भी CLS स्कोर बढ़ जाता है।
अगर आप अपनी वेबसाइट पर कस्टम फोंट का इस्तेमाल करते हैं, तो आपको Flashes Of Invisible Text (FOIT) और Flashes Of Unstyled Text (FOUT) दोनों समस्याओं का सामना करना पड़ रहा होगा। इसके कारण आपकी वेबसाइट का CLS स्कोर भी ज्यादा होगा। क्योंकि इनके कारण Layout Shift होती है इन्हें ठीक करने के लिए आपको Font:display Value को अपनी वेबसाइट पर सेट करना होगा।
यह भी पढ़ें:-
क) Font:Display क्या होता है
वेबसाइट पर कस्टम Font लोड ना होने के कारण वेबसाइट थोड़ी अलग दिखाई देती है। इस दिक्कत को दूर करने के लिए आप Font:Display का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसमें आप Auto, Fallback, Swap और Optional फॉन्ट इस्तेमाल कर सकते हैं।
यह CSS का एक हिस्सा होता है, जो वेब ब्राउज़र को सन्देश देता है कि कस्टम Font को तभी दिखाया जाए जब वह लोड होकर तैयार हो जाए। लेकिन अगर कस्टम font तैयार नहीं है या किसी वजह से लोड नहीं हुआ है तब ब्राउज़र वेबसाइट के Default Font या Fallback Font को दिखाता है।
मुख्य बिंदु –
ख) Font Preload का इस्तेमाल करें
इसका इस्तेमाल करके आप फोंट्स को जल्दी लोड करवा सकते है। इसके लिए आपको <link rel=preload> का इस्तेमाल करना होगा। यह एक ऐसा HTML Tag होता है, जो वेबसाइट के कुछ रिसोर्सेज को जल्दी लोड करने के लिए ब्राउज़र को सन्देश देता है। जैसे – इमेज और फॉन्ट।
Font:Display Optional और Font Preload को WordPress और Blogger दोनों प्लेटफार्म पर इस्तेमाल कर सकते हैं। इसे वर्डप्रेस पर इस्तेमाल करने के लिए आप Better Resource Hints और Wp Rocket Plugin का इस्तेमाल कर सकते हैं। ब्लॉगर पर इनका इस्तेमाल करने के लिए आपको HTML कोड में बदलाव करना होगा। आप गूगल के रिसोर्सेज से इन कोड को ले सकते हैं, और CLS Fix कर सकते हैं।
CLS स्कोर खराब होने के पीछे इमेज के अलावा Embed, iFrame और Dynamically Injected Content भी होते हैं।
Embed content क्या होते हैं – वेबसाइट कंटेंट में हम अक्सर कुछ Embeddable विजेट का इस्तेमाल कंटेंट Embed करने के लिए करते हैं। काफी लोग अक्सर अपनी Websites में यूटूब विडियो या सोशल मीडिया पोस्ट Embed करते हैं।
iFrame content क्या होते हैं –
जब हम किसी वेब पेज में किसी दुसरे पेज के कंटेंट को एम्बेड करते हैं तो इसे iframe कंटेंट कहा जाता हैं। एक iframe जो HTML एलिमेंट होता है इसे inline फ्रेम भी कहा जाता है।
Embed content SEO का हिस्सा होते हैं। यह वेबपेज की वैल्यू बढ़ाते हैं। लेकिन यह भी सच है कि यह लेआउट शिफ्ट का कारण भी बन सकते हैं। इन विजेट के लिए वेबसाइट में जगह आरक्षित रखनी चाहिए। ताकि ब्राउज़र को वेब पेज कंटेंट को अच्छे से व्यवस्थित करने में परेशानी न हो। इससे CLS स्कोर भी अच्छा हो सकता है।
Viewport – यह वेबसाइट का वह हिस्सा होता है जो यूजर डिवाइस पर दिखाई देता है।
देरी से लोड होने वाले कंटेंट( Late load content) को कभी भी viewport के सबसे ऊपरी और निचले हिस्से में मत रखें। इससे बड़ा लेआउट शिफ्ट देखने को मिल सकता है। क्योंकि यह कंटेंट अपने आस पास के कंटेंट को इधर-उधर खिसका सकता हैं। ऐसा करने से कभी-कभी कंटेंट स्क्रीन से ही हट जाता है।
इस कंटेंट से होने वाले लेआउट शिफ्ट को रोकने के लिए आप fix साइज़ के कंटेनर का इस्तेमाल कर सकते हैं
इसके अलावा आप Carousel का इस्तेमाल भी कर सकते हैं। वर्डप्रेस में इसे आसानी से किया जा सकता हैं। जब आप कोई पोस्ट लिखते हैं तो प्लस बटन पर जाकर आप Carousel को ले सकते हैं। इसके अलावा आप किसी पैराग्राफ को सेलेक्ट करके टूल्स से इसे आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं।
Dynamically Injected Content से होने वाले लेआउट शिफ्ट से बचने के लिए हमेशा इन कंटेंट के लिए जगह अरक्षित (Reserve) रखें, ताकि ब्राउज़र आसानी से वेब पेज कंटेंट को अच्छे से व्यवस्थित कर सके। आप अरक्षित जगह रखने के लिए CSS में Min-height को अपडेट कर सकते हैं। इससे CLS काफी हद्द तक कम की जा सकती है।
आज का लेख CLS Fix Kaise Kare पर है। मैं आशा करता हूं, कि आपको इस लेख से कुछ सीखने को मिला होगा। मैं यह भी आशा करता हूं, कि इस लेख में मिली जानकारी आपको CLS Issue को ठीक करने में सहायता करेगी।
CLS, Google Search Console के Core Web Vitals के तीन जरूरी पॉइंट्स LCP, FCP और CLS हैं। जिन्हे मैने अपने इन सभी लेख में समझाने कि पूरी कोशिश की है। अगर अपने ये लेख नहीं पढ़ें हैं, तो इन्हे पढ़ सकते हैं। क्योंकि यह आपकी Google Core Web Vitals के Issue को सुधारने में मदद करेंगे।
आप कॉमेंट करके अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें, की आपको Techaasvik Blog पर दी जाने वाली जानकारी कैसी लगती है। लेख को पढ़ तक पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद, राधे राधे।
आज का लेख मैं आपको बताऊंगा, कि First Contentful Paint FCP Kya Hai. इस लेख में ऐसे पॉइंट्स को डिस्कस करने वाला हूं, जो आपके बेहद काम आने वाली है।

अगर आप भी अपने वेबसाइट के Page Speed को बढ़ाना चाहते हैं, जिससे यूजर्स को अच्छा अनुभव मिले तो लेख को अंत तक पढ़े।

FCP Full Form– इसे First Contentful Paint FCP कहा जाता है। यह गूगल के Core web vitals की एक ऐसी मैट्रिक्स है। जो यूजर के पहली बार वेबसाइट पर आने से लेकर यूजर स्क्रीन पर – पेज के कंटेंट का कोई भी हिस्सा रेंडर होकर दिखने तक मापा जाता है।
आप कह सकते हैं कि यूजर्स को वेबसाइट कंटेंट का पहला हिस्सा दिखाई देने में जितना समय लगता है, उसे FCP कहा जाता है। FCP का इस्तेमाल वेबसाइट लोडिंग स्पीड मापने के लिए किया जाता है।
First Contentful Paint FCP Kya Hai, इसे ज्यादा अच्छे से समझने के लिए आप नीचे इमेज देख पा रहे होंगे। इसमें साफ़ नजर आ रहा है कि पहली बार कंटेंट तीसरे (Image के हिसाब से Change होगा) फ्रेम में आया है। आशा करता हूँ, आपको FCP की परिभाषा First Contentful Paint FCP Kya Hai, अच्छे से समझ आ गयी है।
किसी भी वेबसाइट की लोडिंग स्पीड को हम First Contentful Paint FCP से माप सकते हैं FCP स्कोर जितना अच्छा होगा यूजर एक्सपीरियंस भी उतना ही अच्छा होता है इसीलिए वेबसाइट का FCP स्कोर अच्छा होना चाहिए
June 2021 से Google ने Core Web Vitals को रैंकिंग सेक्टर में जरूरी हिस्सा बना दिया है, जिसका मतलब है कि वेबसाइट का FCP Score अच्छा होने से गूगल से आपकी वेबसाइट पर ज्यादा Visibility मिलने की संभावना हो सकती है।
अगर वेबसाइट यूजर के सामने जल्दी खुल जाती है, इसका मतलब है कि वेबसाइट का एफसीपी स्कोर अच्छा है। एक अच्छा FCP Score वेबसाइट के Responsive Interface और Attractiveness को दर्शाता है, जो यूजर्स को अच्छा अनुभव देती है।
FCP Core Web Vitals का एक जरूरी हिस्सा है। जो कई तरीकों से Website Ranking, UX, Performance को सुधारने में मदद करता है।
FCP Test करने के लिए कुछ टूल्स हैं, जिनका इस्तेमाल करके आप FCP Test कर सकते हैं। इन टूल्स का इस्तेमाल करके आप अपनी वेबसाइट का लोड टाइम चेक कर सकते हैं

फर्स्ट कंटेंटफुल पेंट FCP को सुधारने के लिए आप इन तरीकों को फॉलो कर सकते हैं। अब मैं आपको पॉइंट्स में बताऊंगा, कि First Contentful Paint Kaise Theek Karen.
अधिकतर लोग Jpg, Gif, Png फॉरमेट की इमेज का इस्तेमाल करते हैं। आप इनकी जगह Svg या Webp इमेज फॉरमेट अपने ब्लॉग में लगा सकते हैं। क्योंकि Webp इमेज फॉरमेट Png फॉरमेट के मुकाबले लगभग 26% कम साइज़ की होती हैं। वहीँ Jpeg फॉरमेट के मिकबले 25% से भी ज्यादा छोटे साइज़ की होती हैं।
इसीलिए जरुर अपनी मीडिया फाइल को जल्दी लोड करने के लिए इमेज वीडियो और भी दूसरी फाइल को Optimize करें। Webp को Detail में जानें
अपनी वेबसाइट को जल्दी लोड करने के लिए CDN का इस्तेमाल कर सकते हैं। CDN वेबसाइट के स्थिर एलिमेंट्स को अलग अलग सर्वर पर अपलोड कर देता है। इसके बाद वेबसाइट आपके मुख्य सर्वर से लोड नहीं होकर बल्कि यूजर के पास के सर्वर से लोड होने लगती है। जिससे वेबसाइट कम समय में लोड होने लगेगी।
Server Response Time का अर्थ है, कि जब यूजर वेबसाइट खोलने की कोशिश करता है, तो सर्वर कितने समय में यूजर को Response देता है। First Contentful Paint Improve करने के लिए आपको सर्वर रिस्पांस टाइम को Improve करना होगा। इसके लिए आप इन पॉइंट्स को फॉलो कर सकते हैं।
कैशिंग का मतलब है कि आप अपने वेबसाइट के स्थिर रिसोर्सेज को उपयोगकर्ता के ब्राउज़र में स्टोर करते हैं, ताकि वे हर बार डाउनलोड न हों। इससे आपके Server Response Time को कम करने में मदद मिलती है,
Redirects Meaning– जब किसी वेब पेज को दुसरे वेब पेज या Homepage पर डायरेक्शन दी जाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो किसी Webpage के Url को किसी दुसरे Url पर भेजा जाता है। इससे जब यूजर पुराने लिंक को खोलने कि कोशिश करेगा तो वह आटोमेटिक नए लिंक पर पहुच जाता है।
इनका आवश्यकता से अधिक उपयोग नहीं करना चाहिए। क्योंकि इसके अधिक इस्तेमाल से वेबसाइट कि लोडिंग स्पीड पर बुरा प्रभाव पड़ता है, और वेबसाइट धीरे खुलने लगती है।
इन कुछ तरीकों से आप Redirects Avoid कर सकते हैं।
वेबसाइट में इस्तेमाल होने वाले टाइटल,लिंक, फॉर्म, बटन, वीडियो, इमेज जैसे इन सभी एलिमेंट्स को HTML Elements कहते हैं। DOM (Document Object Model) एक ऐसा तरीका होता है, जिससे आप एलिमेंट्स के कोड का इस्तेमाल करके उनमें कुछ बदलाव कर सकते हैं।
अगर आपको वेबसाइट के किसी पैराग्राफ के कलर को चेंज करना है, तो उस पैराग्राफ को DOM की मदद से उस HTML Code को एक ऑब्जेक्ट के तौर पर समझकर उस पैराग्राफ के कलर को चेंज कर सकते हैं।
आज मैने आपको इस लेख में First Contentful Paint FCP Kya Hai के बारे में विस्तार से बताया है। आशा करता हूं, कि आपको इस लेख First Contentful Paint FCP Kya Hai से सीखने को मिला होगा। कमेंट में अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करें।
Techaasvik Blog पर आने के लिए आपका धन्यवाद, राधे राधे।
आपके ब्लॉग का परफॉरमेंस कितना बढ़िया है, यह LCP यानी Largest Contentful Paint पर डिपेंड करता है। अगर ब्लॉग या वेबसाइट का LCP सही है, तो इससे ब्लॉग की रैंकिंग और Users Experience बढ़ने में मदद मिलती है।

गूगल का कहना है, कि साल 2024 में LCP एक Ranking Factor बनेगा और यह Core Web Vitals का एक जरूरी हिस्सा होगा। ब्लॉग और उसके पेज की Loading Speed Increase करने के लिए आपको LCP पर ध्यान देना होगा, उसको ऑप्टिमाइज करना होगा।
मैने आपको अपने पिछले एक लेख में Core Web Vitals 2024 के बारे में विस्तार से बताया है। उसमें मैने आपको बताया कि यह Core Web Vitals क्या हैं, तथा LCP, FCP, FID, CLS, TTFB, TBT, Speed Index क्या होते हैं, इनके बारे में पूरी जानकारी दी है। लेकिन आज का पूरा लेख Largest Contentful Paint यानि LCP के बारे में है, जिसमें मैं आपको LCP को सुधारने के तरीके बताऊंगा। चलिए लेख को शुरु करते हैं-

Largest Contentful Paint Meaning – LCP गूगल के Core Web Vitals मैट्रिक्स का पहला और एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। क्योंकि LCP आपके वेबसाइट पर मौजूद सबसे बड़े एलिमेंट के लोड होने के समय को मापता है। यह एलिमेंट्स कुछ इस प्रकार हैं –
इसलिए हम कह सकते हैं, कि यह आपकी वेबसाइट के Loading Time को मापता है। इसलिए अपने यूजर्स को एक अच्छा वेब एक्सपीरियंस देने के लिए LCP स्कोर का अच्छा बहुत जरूरी है।
LCP के सभी एलिमेंट्स का साइज़ मापने के लिए Viewport का इस्तेमाल होता हैं आपकी वेबसाइट के Viewport में यूजर को जो एलिमेंट दिखाई देता है उस से इनका साइज़ मापा जाता हैं।
वेबसाइट पर वेबपेज का वह हिस्सा होता है जो यूजर को दिखाई देता हैं उसे Viewport कहा जाता है इसका साइज़ सभी Device में अलग होता है जैसे – मोबाइल और लैपटॉप की स्क्रीन साइज़ अलग होता है इसीलिए Viewport भी अलग होता है।

गूगल के अनुसार, अगर आप वेबसाइट पर एक अच्छा User Experience बनाए रखना चाहते हैं, तो आपका LCP स्कोर 2.5 सेकंड या इससे कम होना जरूरी हैं। इसके अलावा वेबसाइट के लोड टाइम को मोबाइल और डेस्कटॉप दोनों पर ऑप्टिमाइज़ करके रखना जरूरी है। यह भी ध्यान देना है, कि वेबसाइट पर आने वाले 75% यूजर के लिए वेबसाइट लोड होने में कितना समय ले रही है। यह टाइम 2.5 Sec के LCP स्कोर के कितना पास और दूर है। इसे हमेशा देखकर Optimize करके रखना है, इससे एक अच्छा User Experience बना रहेगा।

अपनी वेबसाइट के लोडिंग समय को बेहतर बनाने के लिए Largest Contentful Paint (LCP) को ठीक करना बहुत जरूरी है। लेकिन LCP को ऑप्टिमाइज करना आसान काम नहीं है, लेकिन इतना मुश्किल भी नहीं है। इसके लिए आपको कुछ जरूरी फैक्टर्स का ध्यान रखना होगा। इसको बेहतर बनाने के लिए कुछ सरल उपाय ये हैं।
वेबपेज कंटेंट की सभी इमेज को ब्लॉग या वेबसाइट पर Optimize करके लगाना जरूरी होता है, ऐसा नहीं करने से पेज का साइज़ बढ़ता है और होस्टिंग स्टोरेज भी ज्यादा इस्तेमाल होती है।
इसे ठीक करने के लिए आपको ब्लॉग में कम साइज़ की इमेज का इस्तेमाल करना चाहिए। आप Jpg और Png फॉरमेट की इमेज की जगह कंटेंट में Webp के फॉर्मेट में इमेज का इस्तेमाल करें। जिससे इमेज मोबाइल और डेस्कटॉप दोनों स्क्रीन पर जल्दी से लोड हो सके।
जरूरी बिन्दुं :-
इससे आप अपने ब्लॉग के Users Experience को Improve कर सकते हैं। Page की Loading Speed को सुधार सकते हैं, Seo Ranking Improve कर सकते हैं। Conversion Rate Improve कर सकते हैं।
वेबसाइट की लोडिंग स्पीड इसलिए भी कम हो सकती है। क्युकी आप ऐसी Plugins को डैशबोर्ड में इनस्टॉल करके रखते हैं, जिनका आप इस्तेमाल भी नहीं करते हैं। इसलिए आपको Unused Plugins को हटा देना चाहिए।
Render-Blocking Resources Kya Hai – वेबसाइट पर मौजूद कुछ ऐसी स्थिर फाइल होती हैं, जिनसे वेब पेज का पहला कंटेंट खुलने में देरी होती है। इन फाइलों को सीएसएस और जावास्क्रिप्ट कहते हैं। इन फाइल्स के कारण वेब पेज के एलिमेंट्स को एक साथ दिखने में समय लगता है। इससे वेबसाइट की स्पीड कम होती है।
अपनी वेबसाइट के Render-Blocking Resources को देखने के लिए आप गूगल के इन टूल्स का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। जैसे –
Render-Blocking Resources को Remove करने के लिए उन फाइलों को Non Render केटेगरी में रखें जो वेब पेज पर पहला कंटेंट लोड होने के लिए जरूरी नहीं है।
आपको वेबसाइट की CSS और JavaScript को Defer या Async करना होगा। इसके लिए आप वेबपेज के एंड में इन CSS Files को लगा सकते हैं।
इससे वेब ब्राउज़र पर पहले HTML और बाद में CSS फाइल लोड होती है। इसके कारण वेबसाइट की लोडिंग स्पीड बड़ने की संभावना बन जाती है।
नोट:- Core Web Vitals Report और Website Speed में अच्छा स्पीड स्कोर बढ़ाना चाहते हैं, तो अपने ब्लॉग से Render Blocking Css और Javascript Files को रिमूव करना ज़रूरी है।
आप WordPress की कुछ प्लगिंस का इस्तेमाल करके Render Blocking Resources को रिमूव कर सकते हैं। जैसे आप WP Rocket, Speed Booster Pack, Total Cache, Light Speed Cache जैसी plugins इस्तेमाल कर सकते हैं।
सर्वर रिस्पांस टाइम जैसा कि इसके नाम से ही पता लग रहा है, यह वो टाइम होता है जो किसी वेब सर्वर को यूजर के वेब पेज लोड करने की Request प्राप्त करने से लेकर उसका उत्तर देने में लग रहा है। उसे सर्वर रिस्पांस टाइम कहा जाता है। इसे कभी- कभी Time to First Byte यानी TTFB भी कहते हैं।
Search Engine Optimization के लिए Server Response Time एक जरूरी हिस्सा है। अगर आपकी वेबसाइट का Server Response Time ज्यादा है, तो यूजर्स को वेबसाइट खुलने का इंतजार करना पड़ सकता है। इसका प्रभाव यह होता है कि यूजर वेबसाइट पर ज्यादा देर नहीं रुकता है। इसे गूगल खराब यूजर एक्सपीरियंस में आंकता है।
नोट:- इसमें उस टाइम को नहीं जोड़ा जाता है जो यूजर डिवाइस में डाटा को Rendor करने में लगा है
LCP को ठीक करने में CDN एक अहम भूमिका निभाता है। CDN जिसे Content Delivery Network कहा जाता है। इसका इस्तेमाल करके आप अपनी वेबसाइट की Speed Increase कर सकते हैं। क्योंकि CDN वेबसाइट के स्थिर एलिमेंट्स की कॉपी को अलग अलग सर्वर पर बना देता है।
CDN इस्तेमाल करने का फायदा ये होता है, कि यूजर डिवाइस में आपकी वेबसाइट, उसके यानी यूजर के नजदीकी सर्वर से लोड हो जाती है। इस प्रकार आपके वेब होस्टिंग सर्वर पर लोड कम हो जाता है और LCP स्कोर भी अच्छा हो जाता है। यूजर को वेबसाइट पर सबसे बड़ा कंटेंटफुल पेंट जल्दी दिखने लगता है, जिससे वेबसाइट ज्यादा तेज़ स्पीड में काम करती है।
आप Cloudflare CDN का इस्तेमाल कर सकते हैं, मैं भी काफी समय से इसका इस्तेमाल कर रहा हूँ। यह अपनी मुफ्त और प्रीमियम दोनों तरह की सेवाएं प्रदान करता है।
ऐसा माना जाता है, कि वेबसाइट की परफॉरमेंस हमेशा वेब होस्टिंग फीचर पर निर्भर होती है। इसीलिए हमेशा Core Web Vitals को ध्यान में रखकर ही वेब होस्टिंग को सिलेक्ट करना चाहिए। क्योकि एक अच्छी वेब होस्टिंग हमेशा बहुत सारे फीचर के साथ अच्छा परफॉरमेंस प्रदान करती है। ऐसी वेब होस्टिंग को सिलेक्ट करना सही रहता है, जो स्पीड, सिक्योरिटी, स्टेबल वेब होस्टिंग की सर्विस प्रोवाइड करे। इसलिए होस्टिंग लेने से पहले उसकी रेटिंग, रिव्यु और Specification की जांच पड़ताल कर लें।
कैशिंग ऑन करके आप वेबसाइट की लोडिंग स्पीड को बेहतर कर सकते हैं। कैशिंग ऑन करते ही वेबसाइट के कुछ Static (स्थिर) Element, Temporary Memory में स्टोर हो जाते हैं, जैसे वेबसाइट का Logo, इमेज या विडियो आदि।
इससे फायदा यह होता है, कि जब भी यूजर दोबारा वेबसाइट पर आता है, तो यह फिक्स्ड एलिमेंट्स दोबारा डाउनलोड होने की जगह टेंपररी मेमोरी से लोड हो जाते हैं। इसीलिए वेबसाइट जल्दी लोड होने लगती है।
ये Caching दो तरह के होते हैं।

वेब-ब्राउज़र में भी कैशिंग को ऑन रखना चाहिए क्यूंकि ऐसा करने से ब्राउज़र वेबसाइट के Static (स्थिर) Elements को याद रखता हैं।
आप किसी भी वेब-ब्राउज़र में Caching को आसानी से ऑन कर सकते हैं वैसे तो कैशिंग पहले से ऑन रहती है, फिर भी आप Manually चेक कर लें। जब हम ब्राउज़र की History Clear करने जाते हैं, तो हमें Cache Memory में कितना डाटा स्टोर है। देखने को मिल जाता है, जैसा कि आप नीचे देख रहे हैं –
सर्वर – यह एक कंप्यूटर सिस्टम है, जो नेटवर्किंग के द्वारा दुसरे कंप्यूटर को अपनी सेवा देता हैं। सर्वर पर डाटा स्टोर करने से लेकर मोबाइल एप्लीकेशन और वेबसाइट होस्टिंग तक सभी काम आसानी से हो जाते हैं। इसीलिए हम कह सकते हैं, कि जहाँ पर किसी वेबसाइट का डाटा स्टोर होता हैं, उसे सर्वर कहा जाता हैं।
इसी प्रकार सर्वर-साइड कैशिंग का अर्थ है, कि वेबसाइट का एक पेज या कुछ डाटा सर्वर पर स्टोर हो जाना इसीलिए जब यूजर आपकी वेबसाइट पर आता है तो सर्वर इस स्टोर किए गए डाटा को दिखा देता है जिससे वेबसाइट लोडिंग टाइम कम होता हैं।
क्या आप जानते हैं कि Lazy Loading क्या है, यह वेबपेज की शुरूआती Rendororing के दौरान Unnecessary CSS और बाकि सभी फालतू की फाइलों को शुरुआत में लोड होने से रोक सकते हैं।
इससे जब यूजर किसी वेब पेज को ओपन करता है, तब उसके सामने सिर्फ वही चीज़े लोड होकर दिखाई देती हैं। जो यूजर के लिए जरूरी होती हैं। वेबसाइट की डिज़ाइन पर ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि वेब पेज जल्दी लोड होने से इंटरनेट का इस्तेमाल कम होता है।
अगर आपका वेब पेज ज्यादा लंबा है, और यूजर पेज को लंबे समय तक नीचे स्क्रॉल करता है। इसके लिए आपको Paginated Loading का सपोर्ट लेना चाहिए। यह वेब पेज को ज्यादा पार्ट में बांट देता है। जब यूजर वेबसाइट पर पहुंचता है, ये पार्ट तभी लोड होते हैं। Lazy Loading Issues Fix करने से वेबसाइट तेज और स्मूथली काम करती है।
Core Web Vitals में वेबसाइट की लोडिंग स्पीड सुधारने के लिए वेबसाइट की Javascript, HTML, CSS की फाइलों के कोड से Unnecessary Space, कमेंट और बाकि सभी बिना जरूरत की चीजों को हटाकर छोटा करना है। इससे वेबसाइट की स्पीड में सुधार देखने को मिलेगा।
Third Party Script Code वह कोड होते हैं, जो दूसरे सोर्स जेसे Google Analytics, Customer Support Widgets से लोड होते हैं। ये कोड वेबसाइट पर अलग अलग तरीकों से असर डालते हैं, जिनके रिज़ल्ट कुछ गलत भी हो सकते हैं।
LCP Render-Blocking Resources में हुए सुधार को को देखने के लिए Core Web Vitals, First Contentful Paint, Largest Contentful Paint, Time to Interactive, Total Blocking Time, Cumulative Layout Shift, आदि का स्कोर चेक करें। इनके बारे में Detail जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लेख को पढ़ें –
Core web Vitals क्या है – 2024 Tutorial
आज मैने आपको इस लेख में How to fix Largest Contentful Paint WordPress के बारे में जानकारी दी है। आशा है कि आपको आज का लेख पसंद आया होगा, जिसमें ये सभी पॉइंट्स को डिस्कस किया है।
अंत तक पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद, राधे राधे।
लेख एक नजर में – Core Web Vitals
आपने अपना एक ब्लॉग बनाया, और उसको आकर्षित बनाने के लिए जरूरी हाई क्वालिटी इमेजेस, टेक्स्ट, और विडियोज का इस्तेमाल किया। लेकिन जब हम इन्हें अच्छे से Optimize नहीं करते हैं, तो वेबसाइट पेज देरी से खुलता है। क्योंकि Images और Text को Optimize ना करने के कारण वेबसाइट की स्पीड कम हो जाती है। तब ज्यादातर यूजर पेज खुलने से पहले ही आपके ब्लॉग से चले जाते है। जिससे Users Experience खराब होता है, इसलिए वेबसाइट का जल्दी से खुलना जरूरी होता है। जिससे यूजर्स जल्द से जल्द जरूरी जानकारी तक पहुंच सके और आपके ब्लॉग वेबसाइट का Users Experience बना रहे।

गूगल कहता है, कि लगभग 53% मोबाइल यूजर्स ऐसी वेबसाइट से तुरंत चले जाते हैं। जो खुलने में 3 सेकंड से ज्यादा का समय लेती हैं, इसीलिए वेबसाइट का लोडिंग टाइम 3 सेकंड से कम होना चाहिए। इसके अलावा वेबसाइट का Layout भी स्टेबल होना चाहिए, इसे बार बार बदलना नहीं चाहिए।
यदि आप भी अपनी वेबसाइट के स्पीड, इंटरएक्टिविटी, विजुअल स्टेबिलिटी और Overall Performance को बढ़ाना चाहते हैं, तो Core Web Vitals को सुधारने पर ध्यान देना होगा। यह वेबसाइट के मोबाइल फ्रेंडली, Https और Page Experience को बेहतर करने में सहायता करता है। इसके लिए इसे अच्छे से समझना जरूरी है।
इसीलिए आज मैं आपको Techaasvik Blog के इस लेख में बताने वाला हूं, कि ब्लॉग वेबसाइट खुलने में ज्यादा समय क्यों लेती है। इस प्रॉब्लम को कैसे सुधारा जा सकता है और इसकी वजह से आपकी ब्लॉग वेबसाइट के Seo पर क्या असर पड़ता है। चलिए लेख को शुरु करते हैं-

Core Web Vitals, यह भी Seo का ही एक हिस्सा है। ऐसा इसलिए क्योंकि यह कुछ ऐसी मैट्रिक्स का एक सेट है जो वेब पेज की लोडिंग स्पीड, रेस्पोंसिवेनेस, विजुअल स्टेबिलिटी,स्मूथ ट्रांजीशन और Overall यूजर Experience को मापते हैं। जिससे वेब पेज को रैंकिंग में सहायता मिलती है। गूगल अपने एल्गोरिथम में अपडेट करता रहता है, जिससे वह अपने यूजर्स को Good Experience प्रोवाइड कर सके। इसीलिए सभी को अपनी वेबसाइट के Core Web Vitals पर ध्यान देना चाहिए।

Core Web Vitals, Google के Page Experience स्कोर के लिए जरूरी होते हैं। गूगल ने इन वेब वाइटल का इस्तेमाल ब्लॉग पेज के User Experience की कॉलिटी को मापने के लिए बताया हैं।
इसीलिए वेबसाइट के Core Web Vitals मैट्रिक्स का महत्व बहुत बढ़ जाता है। चलिए अब इसकी सभी मैट्रिक्स के बारे में जान लेते हैं फिर उन्हें ठीक कैसे करना है उसके बारे में जानेगे।

एलसीपी से ये पता लगाया जा सकता है, कि आपका पेज कितने समय में या कितनी जल्दी खुलता है। इसलिए ब्लॉग को ऐसे डिज़ाइन किया जाता है, कि पेज में इस्तेमाल किए गए टेक्स्ट, इमेजेस या वीडियो 2.5 सेकंड में दिखाई देने लगे। जिससे ब्लॉग पर आने वाले किसी भी यूजर्स को पेज के खुलने का इंतेजार ना करना पड़े।
यह वह टाइम होता है जहाँ से आपका पेज लोड होना शुरू होता है और वहाँ तक मापा जाता है जहाँ तक वेबसाइट का सबसे बड़ा ब्लाक या टेक्स्ट दिखाई नहीं दे जाता है।
यूजर्स को वेबसाइट पर कंटेंट का पहला हिस्सा दिखने में जितना टाइम लगता है उसे FCP या First Contentful Paint का नाम दिया गया है, ये वो टाइम होता है। जब वेबसाइट का पेज लोड होना शुरू करता है, और इसे कंटेंट का पहला हिस्सा दिखने तक मापा जाता है। गूगल की अनुसार यह टाइम 1.8 sec या इससे कम होना चाहिए।
फर्स्ट इनपुट डिले से यह पता लगाया जा सकता है, कि आपका ब्लॉग आपके क्लिक का कितनी जल्दी से रिस्पॉन्स करता है। अगर आपका ब्लॉग आपके क्लिक का रिस्पॉन्स 100MS (मिलीसेकंड) समय में देता है, तो यह आपके ब्लॉग के लिए अच्छा है। गूगल जल्द ही मार्च 2024 में FID को लेकर एक नया रूल लागू करने वाला है, जिसमें FID की जगह INP को मिलेगी।
INP (Interaction to next Paint) से यह पता लगाया जा सकता है, कि ब्लॉग आपके क्लिक का जवाब देती है। उसके बाद स्क्रीन पर कुछ भी एलिमेंट्स दिखाने में कितना समय लगता है।
Core Web Vitals की यह मैट्रिक्स वेबपेज की विसुअल स्टेबिलिटी को मापने का काम करती है। इसका यह मतलब होता है, कि पेज लोडिंग के दौरान एलिमेंट्स कितना इधर- उधर हिलते हैं या मूव करते हैं।
ब्लॉग पर कंटेंट पढ़ते समय अचानक कंटेंट या कोई एलिमेंट्स इधर-उधर हिलती है। जिससे यूजर्स को किसी भी एलिमेंट्स को क्लिक करने में या कंटेंट पढ़ने में परेशानी होती है। तब सीएलएस से यह पता लगाया जा सकता है, कि ब्लॉग पर इस्तेमाल किए गए एलिमेंट्स कितने फास्ट और कितनी बार इधर-उधर होते हैं। ब्लॉग अच्छे से काम करे, इसके लिए CLS का स्कोर 0.1 से भी कम होना जरूरी है।
Speed Index (SI) से यह पता लगाया जा सकता है, कि वेबसाइट को ओपन करने पर उसके एलिमेंट्स, सारे पार्ट्स और कंटेंट को साफ दिखाने में कितना समय लगाती है। अगर आपकी वेबसाइट के पेज बिना देरी के जल्दी लोड हो जाती है, तो यह वेबसाइट के लिए अच्छा होता है।
Time to First Byte (TTFB) से यह पता लगाया जा सकता है, कि वेबसाइट को ओपन करते समय उसका सर्वर आपके कंप्यूटर तक पहली जानकारी कितने समय में पहुंचाता है। अगर सर्वर 0.8 सेकंड से कम समय में आपके कंप्यूटर पर जानकारी दिखाता है, तो यह आपकी वेबसाइट के लिए अच्छा होता है।
Total Blocking Time (TBT) से यह पता लगाया जा सकता है, कि वेबसाइट पर पहली बार कुछ एलिमेंट्स दिखाने के बाद Main Part के कॉन्टेंट को दिखाने में कितना समय लेता है। जब वेबसाइट पर 50MS (मिलीसेकंड) से ज्यादा समय तक पेज का पहला कंटेंट का पार्ट नहीं खुलता है, तो उसे Long Task कहते हैं। Long Task होने की वजह से यूजर वेबसाइट के साथ इंटरेक्शन करते समय उस काम को पूरा करने के लिए इंतजार करना पड़ सकता है।

अपने ब्लॉग का Core Web Vitals स्कोर चेक करने के लिए और उसको सुधारने के लिए आप इन टूल्स का इस्तेमाल कर सकते हैं।
गूगल की एक सर्विस है, गूगल सर्च कंसोल जिसमे आप अपनी वेबसाइट की परफॉर्मेस चेक कर सकते हैं। इसमें Core Web Vitals के सेक्शन में इसकी रिपोर्ट का पता लगा सकते हैं और उसको सुधार सकते हैं। इसके लिए आपका ब्लॉग गूगल सर्च कंसोल के साथ कनेक्ट होना चाहिए।
GSC मोबाइल और डेस्कटॉप दोनों डिवाइस की एक रिपोर्ट देता है, जिसमें वेब पेज की परफॉरमेंस को तीन स्टेटस के बांट देता है।
Core Web Vitals को चेक करने के लिए Google Search Console का इस्तेमाल करने के लिए आप इन स्टेप्स को फ़ॉलो करें।
अगर आपको Core Web Vitals के सेक्शन में No Data Available का मैसेज दिखाई देने का मतलब है, कि आपकी वेबसाइट Google Search Console में नई है। उसमें डाटा अभी तक अपडेट नहीं हुआ है।
इस टूल कि सहायता से आप अपने ब्लॉग और ब्लॉग के पेज की परफॉर्मेस और पेज की स्पीड चेक कर सकते हैं। ये टूल आपको स्कोर और ब्लॉग के लिए सजेशन भी देता है, जिसे सुधारकर आप अपने Users Experience को बड़ा सकते हैं।
PageSpeed Insights का इस्तेमाल करने के लिए आप इन स्टेप्स को फ़ॉलो करें।
Google PageSpeed Insights आपके द्वारा दिए गए, यूआरएल को एनालाइज करके मोबाइल और डेस्कटॉप दोनों डिवाइस की एक डिटेल रिपोर्ट बनाकर देता है। जिसमें स्कोर और एडवाइस बताता है, जिसको समझकर आप पेज को सुधार सकते हैं।
इस टूल कि सहायता से आप अपने ब्लॉग की परफॉर्मेंस और भी कई Core Web Vitals से जुड़े कई Issue के बारे में पता कर सकते हैं। Lighthouse की रिपोर्ट की माध्यम से आप अपने ब्लॉग को इंप्रूव कर सकते हैं।
यह टूल आपकी वेबसाइट को चेक करके उनके Issues को ढूंढने का काम करता है। इस टूल कि सहायता से आप अपनी वेबसाइट की परफॉर्मेस चेक कर सकते हैं और उसको सुधार सकते हैं।
यह आपकी वेबसाइट के रियल टाइम Core Web Vitals के रिज़ल्ट दिखाता है। यह ब्राउज़र की एक एक्सटेंशन है, यह एक्सटेंशन आपको इंस्टेंट फीडबैक प्रोवाइड करता है। जिससे आप आसानी से अपनी वेबसाइट की परफॉर्मेस के बारे में जानकारी ले सकते हैं।
मैने आपको इस लेख के माध्यम से बताया है, कि Core Web Vitals Kya Hai और Core Web Vital क्यों जरूरी होता है। मैं आशा करता हूं, कि आपको आज का यह लेख पसंद आया होगा। ब्लॉग पर आने के लिए आपका धन्यवाद, राधे राधे।
Dedicated Hosting Service Meaning क्या आप अपनी वेबसाइट को फास्ट सिक्योर और भरोसेमंद बनाना चाहते हैं। अगर आप सच में ऐसा करना चाहते हैं, तो आपको Dedicated Hosting Service को इस्तेमाल करना होगा और इसके बारे में जानना और समझना होगा।

Dedicated Hosting Service में आपको एक पूरा सर्वर सिर्फ आपकी वेबसाइट के लिए मिलता है। इसमें बहुत सारे Features का पूरा कंट्रोल आपके हाथ में होता है। आप इन फीचर को अपनी वेबसाइट के अनुसार इस्तेमाल कर सकते हैं, इसके अलावा इसके कुछ जरूरी फायदे देखने को मिलते हैं। जैसे कि –
ये सब तो ठीक है, लेकिन Dedicated Hosting Service चुनने के लिए आपको कुछ बातों को जरुर से जरुर ध्यान रखना होगा। जो इस प्रकार हैं –
लेकिन आप इसे समझने के लिए एकदम सही जगह पर हैं, क्योंकि आज इस लेख में हम Dedicated hosting Service के बारे में सभी महत्वपूर्ण जानकारी देंगे। जैसे – Dedicated hosting service कैसे काम करता है और इसका सही चुनाव कैसे करें इसके अलावा Dedicated Hosting कहाँ से और किस प्रोवाइडर से ले सकते हैं। इसके फायदे, Costing, Future Trend, Dedicated Hosting vs. Other Hosting Options, ऑप्टिमाइजेशन Tips और इसे क्यूँ और कब चुनना चाहिए, इन सभी पर बात करेंगे।
अगर आप अपने ब्लॉग या वेबसाइट कि स्पीड और परफॉरमेंस बढाकर अपनी वेबसाइट को आगे बढ़ाना चाहते हैं, तो इस लेख को अंतिम तक जरुर पढ़ें और ब्लॉग को शेयर करें।

Dedicated hosting service में प्रोवाइडर्स आपकी वेबसाइट के लिए एक Complete सर्वर देते हैं। जो ओर किसी के साथ भी शेयर नही होता है, और इसमें सभी Features का पूरा एक्सेस दिया जाता है। इसके अलावा आप अपने अनुसार सर्वर कॉन्फ़िगरेशन भी चुन सकते हैं।
उदाहरण – आपने एक पूरा घर रहने के लिए खरीद लिया है और इससे पहले आप कहीं एक कमरे में किराये पर रहते थे

Dedicated hosting service दो प्रकार की होती है।

आप शेयर्ड hosting और क्लाउड hosting या dedicated hosting तीनो में से किसको चुनना चाहते हैं यह आपके बिसनेस या आपकी आवश्कता पर निर्भर करता है, और आपकी आवश्यकताओं के बारे में आपसे ज्यादा कोई नहीं जान सकता है।
चलिए कुछ मुख्य कारण जान लेते हैं जो Shared hosting और Cloud hosting के बजाय dedicated hosting service के बारे में सोचने में मजबूर कर सकते हैं –
हर कोई अपनी वेबसाइट या ब्लॉग कि स्पीड बढ़ाना चाहता है ताकि अपने यूजर्स का भरोसा जीता जा सके। Dedicated hosting service अपनी बेहतरीन परफॉरमेंस के लिए ही जानी जाती है, क्योंकि होस्टिंग प्रोवाइडर आपको बहुत सारे रिसोर्सेज इस्तेमाल करने को देता है जिनका पूरा कंट्रोल आपके पास होता है और इन रिसोर्सेज को आपको किसी के साथ भी शेयर नहीं करना पड़ता है, और आप सर्वर को अपने अनुसार इस्तेमाल कर पाते हैं।
इसलिए dedicated hosting service में मैलवेयर और डाउनटाइम जैसी दिक्कतों का सामना करना नहीं पड़ता।
दूसरी और शेयर्ड hosting है, जैसा कि इसके नाम से ही पता लगा रहा है कि इसमें सर्वर को कई सारे यूजर्स इस्तेमाल करते हैं मतलब एक सर्वर को कई सारी वेबसाइट इस्तेमाल करती हैं और इनके रिसोर्सेज को भी उन सभी वेबसाइट के बीच शेयर किया जाता है। इसी कारण कई बार परफॉरमेंस कम देखने को मिल सकती है।
इसके अलावा क्लाउड होस्टिंग में होस्टिंग प्रोवाइडर्स आपको सर्वर का एक नेटवर्क क्रिएट करके देते हैं जहाँ आपकी वेबसाइट का डाटा अलग अलग सर्वर पर डाल दिया जाता है लेकिन आपको सर्वर का पूरा कंट्रोल नहीं दिया जाता है।
Dedicated hosting में आप अपनी वेबसाइट को एक जबरदस्त लुक देकर अपने यूजर्स का ध्यान खींच सकते है सर्वर का पूरा कंट्रोल होने के कारण आप सर्वर को अपने अनुसार configure कर सकते हैं और इसीलिए आप कोई भी सॉफ्टवेर या एप्लीकेशन या plugin आसानी से इनस्टॉल कर पाते हैं। इसके अलावा अगर किसी सेटिंग में फेरबदल करना चाहते हैं तो कर सकते हैं।
आज डिजिटल युग में सिक्यूरिटी सबसे ज्यादा जरूरी होती है क्योंकि वर्तमान में साइबर अटैक और धोखाधड़ी बढती जा रही है इसीलिए सिक्यूरिटी को पहली प्राथमिकता दी जाती है, और इसीलिए Dedicated hosting service बहुत खास मानी जाती है, क्योंकि इसमें सिक्यूरिटी फीचर का पूरा कंट्रोल आपको मिलता हैं और आप आसानी से SSL certificate, backup, recovery, firewall, antivirus आदि को इनस्टॉल कर सकते हैं । जो आपकी वेबसाइट को धोखाधड़ी से बचने में सहायता करते हैं।
शेयर्ड होस्टिंग में आपको सर्वर की सिक्यूरिटी फीचर का पूरा कंट्रोल नहीं मिलता है और इस वजह से इसलिए आप सिर्फ वही फीचर इस्तेमाल कर पाते हैं जो प्रोवाइडर द्वारा उपलब्ध कराये गए हैं
नोट:- यदि आप dedicated hosting service ले रहे है तो आपको कोडिंग का ज्ञान होना जरूरी है या आपके पास एक tech टीम होना चाहिए जो आपकी वेबसाइट को maintain रखे। क्योंकि dedicated hosting में आपको अपनी वेबसाइट के maintenance और ऑपरेशन पर खुद ध्यान रखना होता है।
इसके अलावा आप अपने बिसनेस, बजट और गोल को ध्यान में रखकर ही dedicated hosting को लेने के बारे में सोचें। क्योंकि यह hosting बड़े बिसनेस ग्रुप के लिए काफी लाभदायक होती है। वैसे तो इसे सभी तरह के बिसनेस के लिए उपयोग किया जा सकता है लेकिन छोटे बिसनेस के लिए आपको इसकी इतनी जरूरत महसूस नहीं होती है। इसके अलावा यह महंगी भी होती है, और इसीलिए अपने गोल को ध्यान में रखना ज्यादा जरूरी हो जाता है।

मैंने Dedicated Hosting Service लेने के कुछ फायदे के बारे में शेयर्ड hosting और क्लाउड hosting के साथ तुलना करके table के माध्यम से बताएं हैं –
| Hostings | Dedicated | Shared | Cloud |
| Unmatched Performance | High Loading speed Best Response time Good Uptime क्योंकि आपके पास रिसोर्सेज का फुल access होता है | Low speed Low Response time क्योंकि आपके पास सर्वर का पूरा कंट्रोल नहीं होता है और रिसोर्सेज भी limited मिलते हैं | Moderate speed Moderate Response time, Moderate Uptime क्योंकि सर्वर पर कुछ हद्द तक कंट्रोल मिलता है |
| Security Features | High सर्वर का फुल कंट्रोल होता है | Low सर्वर का लिमिटेड कंट्रोल होता है | Moderate सर्वर का थोडा कंट्रोल होता है |
| Next Level Customization | Best features वो भी फुल access के साथ | Good features | Better features with limited access |
| Maintenance | Self | – | – |
| Cost | Expensive | Low Cost | Average |
| Support | High Dedicated सपोर्ट मिलता है | Low क्योंकि सपोर्ट टीम shared यूजर्स को भी सपोर्ट देता है | Moderate |
| Technical knowledge | आपको Tech knowledge जैसे coding आना चाहिए या आपके पास एक tech टीम सपोर्ट होना चाहिए | Tech knowledge की आवश्यकता नहीं होती | Tech knowledge की आवश्यकता नहीं होती |

Dedicated Hosting Service लेने के लिए आपको कुछ जरूरी बिन्दुओं को ध्यान में रखना है –
इसके अलावा प्रोवाइडर की सर्विस लेवल अग्रीमेंट (SLA) को भज पढ़ लें, ताकि भविष्य में किसी दिक्कत का सामना न करना पड़े।

Dedicated Hosting Service को लेना तब आवश्यक हो जाता है। जब –
Dedicated Hosting Service आपकी सफलता में एक स्मार्ट इन्वेस्टमेंट साबित हो सकती है। क्योंकि इसमें आपको बेहतरीन लोडिंग स्पीड, परफॉरमेंस और जबरदस्त Customization के ऑप्शन मिलते है।
यह एक ऐसी हाई Quality Hosting होती है, जो बहुत सारे रिसोर्सेज, फीचर और पावरफुल सिक्यूरिटी के साथ मिलती है। इसे ऐसी वेबसाइट इस्तेमाल करती हैं, जिनपर ज्यादा ट्रैफिक आता हो और जिन्हें ज्यादा सिक्यूरिटी और रिसोर्सेज की आवश्यकता पड़ती है।
नहीं, Dedicated Hosting सभी तरह के बिसनेस साइज़ के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन आपके ऑनलाइन बिसनेस के साइज़ के हिसाब से आपको इसकी जरूरत है या नहीं यह उस पर निर्भर करता है क्योंकि ज्यादातर लोग इसे तब इस्तेमाल करते हैं जब उनकी वेबसाइट पर ट्रैफिक अधिक मात्रा में आने लगता है
आज के लेख में, मैं आपको ब्लॉग पोस्ट को 2024 में Google Discover Feed में लाने के 15 तरीकों के बारे में बताऊंगा। शायद कुछ लोगों को इन तरीकों के बारे में पहले से ही पता होगा।

आज का आर्टिकल उनके लिए है, जो लोग ब्लॉगिंग में नए हैं और अपने ब्लॉग पोस्ट को Google Discover Feed में लना चाहते हैं। अगर आप इन तरीकों को अपनाते हैं तो एक दिन आपका भी ब्लॉग पोस्ट Google Discover Feed में आ सकता है। चलिए लेख को शुरु करते हैं, Techaasvik Blog पर आपका स्वागत है।
मैने अपने पिछले एक लेख में गूगल डिस्कवर का मतलब क्या होता है, इसके बारे में विस्तार से बताया है। जिसमें मैने बताया है, कि Google Discover को Google Search Console में कैसे ऑन करना है। साथ ही कुछ टिप्स और पॉइंट्स को भी बताए हैं, जिससे आप अपने ब्लॉग पोस्ट को Google Discover Feed में ला सकते हैं।

अपनी ब्लॉग पोस्ट में आप जितनी भी Images का इस्तेमाल करते हैं, उनकी चौड़ाई कम से कम 1200px होनी चाहिए। हमेशा अपने ब्लॉग में High Quality Images का इस्तेमाल करें, इमेज ब्लर ना हो और इमेज की ब्राइटनेस पर ध्यान रखें। इस तरह की किसी भी Images का इस्तेमाल नहीं करनी चाहिए जिससे किसी की भावनाओ को ठेस पहुंचे। इमेज के अंदर लिखा गया टेक्स्ट कंटेंट से मैच होना चाहिए।

आप अपने ब्लॉग पोस्ट में जितनी भी इमेज का इस्तेमाल करते हैं, उनका अधिकतम साइज Robot Meta Tags में Large पर सेट होना चाहिए। आप जानते ही होंगे, कि Max Preview इमेज में तीन ऑप्शन होते हैं।
None पर सिलेक्ट करने से Google आपकी Image को Preview में नहीं दिखायेगा।
अगर आप Standard पर इमेज को सिलेक्ट करते हैं, तो इमेज का साइज छोटा दिखाई देता है।
आपने देखा होगा कि, गूगल डिस्कवर में सबसे बड़ा एलिमेंट थंबनेल होता है और ज्यादातर High Quality Images होती हैं। इसलिए आप अपने वेब पेज में इमेज को Large पर सेट कर सकते हैं, जिससे आपकी ब्लॉग पोस्ट के Google Discover Feed में आने के अवसर बढ़ जाते हैं।
Note- अगर आप अपनी Images को Large पर सेट नहीं करते हैं, तो इसका सीधा मतलब होगा की गूगल के पास आपकी High Quality इमेज Google Discover Feed में दिखाने की परमिशन नहीं है।

अपने ब्लॉग ओर वेबसाइट के Logo को अपने सोशल मीडिया पर नॉर्मल तरीके से इस्तेमाल नहीं करना है। अपने Logo को ब्लॉग के Header पर लगाना चाहिए, इसके अलावा Logo का कम से कम इस्तेमाल करना चाहिए। अगर आप Logo का इस्तेमाल Blog Graphics Image बनाने के लिए करते हैं तो उसको एक छोटे एलिमेंट के रुप में कर सकते हैं।

आपने देखा होगा कि गूगल डिस्कवर फीड में टाइटल अर्ट्रेक्टिव और कैची होते हैं। क्योंकि ब्लॉग कंटेंट को क्लिकेबल बनाने के लिए टाइटल का मुख्य रोल होता है। Meta Title ब्लॉग कंटेंट से Match होना चाहिए।
Feature Image, टाइटल और डिस्क्रिप्शन आपके ब्लॉग कंटेंट के अनुसार होना चाहिए। ब्लॉग का सीटीआर बढ़ाने के लिए किसी भी प्रकार की गलत इन्फॉर्मेशन नहीं देनी चाहिए।
अपने ब्लॉग पर Trending Topics पर आर्टिकल लिखना चाहिए, जिससे कंटेंट यूनिक बनता है। कंटेंट में यूजर्स के लिए इनफॉर्मेटिव नॉलेज देने की कोशिश करें, क्योंकि इससे यूजर्स का Experience बढ़ता है।

अपने ब्लॉग में Rss Feed के ऑप्शन को इनेबल करना है।

आपको ध्यान देना है, कि Robot.txt में Rss Feed के URL का ऑप्शन Disallow या ब्लॉक पर सिलेक्ट नहीं होना चाहिए। RSS Feed ब्लॉक करने से Google Bot उन URLs को ट्रैक नहीं कर सकता है, जिससे Google Bot आपके ब्लॉग कंटेंट को नहीं पढ़ पायेगा। जिसका सीधा मतलब है, कि गूगल आपकी ब्लॉग पोस्ट Google Discover Feed में नहीं दिखा सकता है।
Feed Url क्यूँ बनते हैं-कैसे Disable करें

आपके ब्लॉग में Rss Feed और ATOM Feed को फॉलो करने का ऑप्शन इनेवल होना चाहिए। क्योंकि इससे ब्लॉग रीडर्स और Google के Bots को आपके ब्लॉग पेज को विजिट किए बिना उसकी Updates करने का फीचर देता है।
Note- आपको Check करना है, कि कोई क्रेशिंग प्लगिन RSS Feed को क्रेश नहीं कर रहा हो। सुनिश्चित करें कि आपका कैशिंग प्लगइन, जो प्रदर्शन बढ़ाता है, फ़ीड यूआरएल को कैश नहीं कर रहा है।

आपको अपने ब्लॉग के किसी भी Feed URL को ओपन करके Title और लिंक को Check करना है, कि वह URL में दिखाई दे रहे हैं या नहीं। क्योंकि कोई भी यूजर Google Discover Feed में आए Thumbnail पर सिलेक्ट करता है तो उसे Feed URL ना दिखाकर Page का Direct Link दिखाना जरूरी होता है। जिससे यूजर्स ब्लॉग पेज पर आसानी से पहुंच सकते हैं।
अपने ब्लॉग पर किसी भी प्रकार के कंटेंट को पब्लिश नहीं करना है, जो गूगल की पॉलिसी के खिलाफ हैं। इसलिए गूगल की पॉलिसी को ध्यान में रखते हुए ही कंटेंट लिखें।
ब्लॉग पर पब्लिश किए जाने वाले Sponsored Content और लिंक्स को अलग से मार्क करें, जिससे ब्लॉग पर आने वाले विजीटर्स को आपके ओरिजिनल कंटेंट और Sponsored Content की पहचान करने में आसानी मिल सकती है।
अगर आप अपने ब्लॉग पर Political Content या पॉलिटिकल पार्टी से जुड़ी जानकारियों को पब्लिश करते हैं। तो ब्लॉग में क्लियर करें, कि आप किस पॉलिटिकल पार्टी से जुड़े हुए हैं।
अपने ब्लॉग पेज और कंटेंट में ऑथर, पब्लिशर और वेबसाइट के बारे में जानकारी देनी चाहिए। जिससे यूजर्स को कंटेंट के पब्लिशर और वेबसाइट के बारे में जानकारी मिलने में मदद मिलेगी।
ब्लॉग पर दिए गए, Contact Details को समय समय पर अपडेट्स करते रहना चाहिए। जिससे यूसर्स को आपके साथ कनेक्ट होने में किसी प्रकार की परेशानी का सामना ना करना पड़े।
मैने आपको इस लेख में Google Discover 2024 के बारे में बताया और 15 ऐसे तरीक़े बताएं हैं। जिनको अपनाकर आप अपने ब्लॉग पोस्ट को Google Discover Feed में ला सकते हैं। मुझे आशा है कि आपको आज का लेख पसंद आया होगा। अंत तक पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद, राधे राधे।